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वीर गाथा- कैप्टन शाम लाल के ज़हन में 23 साल बाद भी ताजा है “कारगिल विजय” के वह सुहावने पल

*कारगिल युद्ध पाकिस्तान के धोखे की कहानी । ना लगने दिया मां की इज्जत पर बट्टा । जब हिमालय की दुर्गम चोटियों पर भारतीय वीर जवानों ने दुश्मन को चटाई थी धूल ।*

एप्पल न्यूज़, शिमला

लगता है कल की ही तो बात है ,जब वर्ष 1999 के भयंकर कारगिल युद्ध में द्रास, काकसर,कारगिल, बजरंग पोस्ट, मॉस्को वैली जैसे अति दुर्गम 18000 फिट से भी अधिक बर्फानी पहाड़ियों में जहां तापमान माइनस 47 डिग्री तक था सिर पर कफन बांधकर अपने प्राणों का सर्वोच्च बलिदान देकर प्रदेश और मातृ भूमि की रक्षा करके देश का नाम रोशन किया था । इन अति उत्तम पहाड़ियों में कठिनतम परिस्थितियों के मध्य भारत और पाकिस्तान के मध्य 3 माह तक चले कारगिल युद्ध में भारतीय सेना ने जिस अदम्य साहस से दुश्मन को धूल चटाई थी , उसकी मिसाल युगों युगों तक संसार में और कहीं नहीं मिलती ।

भारत के रणबांकुरों ने अपनी मातृभूमि पर धोखे से जमाए पाकिस्तानी सैनिकों और घुसपैठियों को जिस बहादुरी से वापिस खदेड़ा था उसे याद कर आज भी हर देशवासी गर्व महसूस करता है ।

5000 मीटर से भी अधिक ऊंचाई पर स्थित हिमालय की मश्को, द्रास, काकसर और बटालिक क्षेत्र की इन पहाड़ियों पर जहां दुश्मन पहले ही धोखे से बैठ चुका हो विजय हासिल करना इतना आसान भी नहीं था । इन बर्फानी पहाड़ियों की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए , मौसम भी अनुकूल न हो , दुश्मन की सही तादाद का आलंकन करना कठिन था । इस गंभीरता को मध्य नजर रखते हुए बिना किसी समय गवाए, कर्नल ऑफ द जैक राइफल्स रेजिमेंट के सौजन्य से बटालियन के साथ अतिरिक्त सैन्य बल जैसे आर्टिलरी रेजिमेंट, राष्ट्रीय राइफल्स की कंपनियां, रेजिमेंट से चुने हुए बहादुर ऑफिसर्स, जेसीओज और जवान तथा एक पैराशूट बटालियन की प्लाटून भी लगा दी गई थी ।
उस समय 14 जम्मू कश्मीर राइफल्स में तैनात राजधानी शिमला के उप नगर घनाहट्टी, गांव और पंचायत धमून निवासी आनरेरी कैप्टन शाम लाल शर्मा के जहन में 23 साल बाद भी कारगिल युद्ध की वह यादें ताजा है ।

कैप्टन शर्मा बताते है की समझौते के मुताबिक सर्दियों में 6 महीनों के लिए दोनों देशों की सेनाएं अपनी पोस्ट छोड़कर वापिस जाया करतीं थी।
लेकिन इस वर्ष 1999 उन्होंने धोखा किया । कारगिल की उन ऊंची चोटियों पर बैठ करके पाकिस्तान के नापाक इरादों ताकि लेह लद्दाख और सियाचीन के रास्तों को रोका जाए । पता तब चला जब हमारी सेना की एक पेट्रोल पार्टी पर 3 मई 1999 को बटालिक सेक्टर में गई जिस पर पहला हमला हुआ । फिर 12 वा 13 मई , 1999 को लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया की अगुवाई वाली पेट्रोलिंग पार्टी पर बजरंग पोस्ट के पास दूसरा हमला हुआ था। जिसमें उन्होंने बर्बरता के साथ सलूक किया । 15 और 16 मई को इसी क्षेत्र बजरंग पोस्ट पर एक और बड़ी पेट्रोल पार्टी पर दुश्मनों का आमना सामना और बड़ा हमला हुआ जिसमें दोनों और से काफी जान माल का नुकसान हुआ और झेलना पड़ा ।
बिना किसी समय गवाए भारतीय सेना चारों ओर कूच कर चुकी थी । इन पहाड़ियों में पहुंचने के लिए ऑक्सीजन की बहुत कमी थी, दवाईयो गरम वस्त्र स्नो टेंट और स्नो बूट इत्यादि की अधिक जरूरत पड़ रही थी दुश्मन द्रास सेक्टर से लेह और सियाचीन जाने वाले रास्तों को लगातार रोक रहा था क्योंकि वह ऊंचाइयों पर बैठा था पाकिस्तानी सैनिक और उनके घुसपेठिए ऊंचाई से पहाड़ियों पर हमें नुकसान पहुंचा रहे थे।

हमारी फौज की गाड़ियों को रोड से वहां जाने के लिए रात को ही गुजरना होता था फायरिंग लगातार हो रही थी, और हमारी गाड़ियों को बिना लाइट के चलने को मजबूर कर दिया था । जिससे सैन्य बल, वैपन, अमुनीशन राशन क्लॉथिंग इत्यादि पहुंचा ने में बाधाएं हो रही थी , और स्थिति इतनी गंभीर थी की एक दुश्मन को मारने के लिए कई गुणा सैनिकों को लगाना पड़ा, कारण वश उनकी तयादात का इंताजा रखते हुए भारी सैन्य बल मंगवाना पड़ रहा था ।
कारणवश 24 मई, 1999 को कारगिल सेक्टर में धोखे से आए पाकिस्तानी सेना और घुसपैठियों को खदेड़ने के लिए ऑपरेशन विजय घोषित कर दिया गया । मशको, द्रास, काकसर, और बटालिक क्षेत्र में दुश्मनों ने नापाक घुसपेट की हुई थी । मशको वैली में 8 माउंटेन डिविजन और बटालिक में 3 माउंटेन डिविजन को लगाया गया । 140जम्मू कश्मीर राइफल्स को दुश्मन को पीछे खदेड़ने का जीमा सौंपा गया ।

काकसर क्षेत्र को दुश्मन के कब्जे से छुड़ाने की मात्र 14 जम्मू कश्मीर राइफल्स पर ही जिमेवारी निर्धारित थी । इन दुर्गम पहाड़ियों पर रस्सों के सहारे और चढ़ाई के उपकरणों द्वारा चढ़ा गया । स्मॉल आर्म्स,ग्रेनेड, एमएम जी, एलएमजी, मोर्टार, तथा बोफोर्स आर्टिलरी के असंख्य फायर चलते रहे रात दिन दोनों ओर से फायरिंग चलती थी लोग मरते भी रहे घायल भी होते रहे लेकिन हमारी सेना का मनोबल, जुनून जोश और हिम्मत बरकरार था जिससे हमें कामयाबी हासिल हुई ।
इस भयंकर युद्ध में दुश्मनों का भारी संख्या में जान और माल का नुकसान किया गया,उनकी पीछे से पहुंचने वाली हर मदत सप्लाई को रोका और काटा गया मारा गया घायल किया गया जिससे उन्हें मजबूरन पीछे हटना पड़ा ।

पाकिस्तानी सैनिकों, घुसपैठियों, धोखेबाजों को हिमालय की इन भारतीय चोटियों से उल्टे पांव भागना पड़ा तथा मजबूरन भारी मात्रा में एम्युनिशन राशन और क्लॉथिंग फेंक गए तथा अपने घुसपैठियों और सैनिकों की लाशे तक छोड़ कर चले गए जिनको भारतीय सेना ने इज्जत के साथ उन्हे दफनाया था ।

19 मई, सन 1999 को 14 जैक राइफल्स को काकसर इलाके मे भेजा गया। यूनिट में सभी सैनिक डोगरा होने के कारण पहाड़ी पर चढ़ने के माहिर होते थे । यहां की चोटियों की ऊंचाई बहुत ज्यादा दुर्गम और दुरूह थी । चोटियों पर चढ़ने और उतरने के लिए रस्सों द्वारा रेंग रेंग , और चढ़ने वाले उपकरणों का सहारा लिया गया । दूसरा कदम तब ही उठता है जब पहला जम जाता है ।इन सभी चोटियों पर विजय हासिल कर विजय का झंडा लहराया । ज्ञात रहे की इन चोटियों को अब जिमी टाप, सचिन सेड्डल, और बिष्ट टाप के नाम से बोला जाता है ।
बटालियन के जवानों ने इस इलाके में कई दिनों तक मोर्चा संभाला बड़ी दलेरी, साहस, हिम्मत का कार्य किया, दुश्मनों को आगे बढ़ने से रोका उनको मार गिराया और वापिस उनके वतन जाने को खदेड़ा, तथा पूर्ण तौर पर यकिन करने के बाद ही की अब वहां कोई दुश्मन बचा तो नहीं ,एक मात्र 14 जम्मू कश्मीर राइफल्स ने तसदीक किया तभी जाकर सीस फायर घोषित किया गया था । एवम 26 जुलाई 1999 से प्रति वर्ष विजय दिवस मनाया जाता है।

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