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DGP डिस्क अवार्ड विवाद, पुराने ने दिए नए ने कैंसिल किए, आखिर पूरा मामला क्या है?

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एप्पल न्यूज, शिमला

चीफ इंजीनियर विमल नेगी मौत मामले ने पूरे पुलिस विभाग की चूल्हें हिला दी हैं। लगातार एक के बाद एक विवाद, आपसी कलह,लापरवाही और अनुशासनहीनता ने विभाग को ही सवालों के घेरे में ला खड़ा कर दिया है।

🔹 क्या है डीजीपी डिस्क अवार्ड?

हिमाचल प्रदेश पुलिस में डीजीपी डिस्क अवार्ड को लेकर जो हालिया विवाद सामने आया है, वह प्रशासनिक पारदर्शिता, उत्तराधिकार नीति और सम्मान की गरिमा को लेकर गंभीर सवाल खड़ा करता है।

एक ओर जहां अधिकारियों को प्रोत्साहन देना जरूरी है, वहीं दूसरी ओर उस प्रक्रिया की निष्पक्षता और वैधता भी उतनी ही जरूरी है।

डीजीपी डिस्क अवार्ड पुलिस विभाग के भीतर उत्कृष्ट सेवा, अनुकरणीय कार्य और उल्लेखनीय योगदान के लिए दिया जाने वाला प्रतिष्ठित सम्मान है। इसे राज्य पुलिस प्रमुख (DGP) द्वारा प्रदान किया जाता है।

  1. सेवानिवृत्ति के दिन की कार्रवाई:

हिमाचल प्रदेश पुलिस के तत्कालीन डीजीपी अतुल वर्मा ने अपने रिटायरमेंट के अंतिम दिन 172 पुलिसकर्मियों को डीजीपी डिस्क अवार्ड देने की सूची जारी की।

यह सूची हिमाचल पुलिस के सोशल मीडिया और आधिकारिक पोर्टल पर भी साझा की गई।

  1. कार्यकारी डीजीपी की आपत्ति:

जैसे ही अशोक तिवारी ने कार्यकारी डीजीपी (In-Charge DGP) का पदभार संभाला, उन्होंने उक्त आदेश को तत्काल प्रभाव से निरस्त कर दिया।

उनके द्वारा स्पष्ट आदेश जारी कर दिए गए कि डीजीपी डिस्क अवार्ड की अधिसूचना को रद्द माना जाए।

इस विवाद के पीछे की संभावित वजहें:

चयन प्रक्रिया पर सवाल: ऐसा माना जा रहा है कि डीजीपी अतुल वर्मा द्वारा जारी की गई सूची को लेकर कई स्तरों पर पारदर्शिता और मापदंडों की अनदेखी को लेकर आपत्ति जताई गई।

प्रशासनिक औचित्य: कार्यकारी डीजीपी अशोक तिवारी का तर्क यह हो सकता है कि रिटायरमेंट के अंतिम क्षणों में लिए गए निर्णय विभागीय समीक्षा से नहीं गुजरे।

आंतरिक कलह के संकेत: यह मामला पुलिस मुख्यालय में प्रबंधन और नेतृत्व के बीच समन्वय की कमी को भी उजागर करता है।

सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया:

सोशल मीडिया पर यह मामला विवाद का विषय बना हुआ है।

पुलिस विभाग के अंदरखाने से लेकर आम लोगों तक में यह चर्चा हो रही है कि:

“क्या यह फैसला पक्षपातपूर्ण था?”

“क्या यह पुरस्कार देने की प्रक्रिया संस्थागत होनी चाहिए?”

अब आगे क्या?

यदि विवाद गहराता है तो यह मामला विधानसभा या न्यायिक जांच तक भी पहुंच सकता है।

चयनित पुलिसकर्मियों के सम्मान को लेकर भी मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ सकता है।

सरकार या गृह विभाग इस मामले में स्पष्टीकरण या अंतिम निर्णय दे सकता है।

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