एप्पल न्यूज, शिमला
हिमाचल प्रदेश में पंचायत चुनावों का मुद्दा अब केवल प्रशासनिक प्रक्रिया का विषय नहीं रह गया है, बल्कि एक गहरी संवैधानिक बहस का केंद्र बन गया है। राजधानी शिमला में आयोजित ऑडिट वीक कार्यक्रम के दौरान राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल द्वारा दिए गए बयान ने सरकार और प्रशासन दोनों की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
राज्यपाल ने स्पष्ट कहा कि पंचायत चुनाव समय पर करवाना राज्य सरकार और राज्य निर्वाचन आयोग—दोनों की सामूहिक और संवैधानिक जिम्मेदारी है। लेकिन इस समय दोनों पक्षों से जो बयान सामने आ रहे हैं, वे न केवल एक-दूसरे के विपरीत हैं, बल्कि यह संकेत भी देते हैं कि राज्य की प्रशासनिक मशीनरी के भीतर तालमेल की कमी बढ़ रही है।
राज्यपाल ने चिंता जताई कि जहां मंत्री स्तर पर यह दावा किया जा रहा है कि पंचायत चुनाव पूर्व निर्धारित समय पर ही होंगे, वहीं दूसरी ओर सात जिलों के उपायुक्त इस बात की रिपोर्ट दे रहे हैं कि वर्तमान हालात चुनाव करवाने के अनुकूल नहीं हैं।

उपायुक्तों की रिपोर्टों में संभवतः सुरक्षा, स्टाफ की कमी, मौसम संबंधी बाधाएं और अन्य प्रशासनिक चुनौतियों का उल्लेख होगा, जिनके आधार पर उन्होंने चुनाव प्रक्रिया को फिलहाल कठिन माना है।
ऐसे में राज्यपाल का यह सवाल उठाना स्वाभाविक है कि जब सरकार और प्रशासन एक ही विषय पर अलग-अलग राय रख रहे हैं, तो “आखिर बड़ा कौन—मंत्री या अधिकारी?” राज्यपाल का यह सवाल महज किसी व्यक्ति विशेष की हैसियत पर टिप्पणी नहीं है, बल्कि यह एक बड़े और गंभीर मुद्दे की ओर संकेत करता है—राज्य की प्रशासनिक इकाइयों के बीच संवादहीनता।
राज्यपाल ने यह भी चेतावनी दी कि यदि पंचायत चुनाव समय पर नहीं होते, तो इसका सीधा असर प्रदेश की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर पड़ेगा। पंचायतें स्थानीय निकायों की महत्वपूर्ण इकाई हैं और इनका समय पर गठन ग्रामीण प्रशासन के सुचारू संचालन के लिए अत्यंत आवश्यक है।
चुनावों में देरी न केवल राजनीतिक अस्थिरता पैदा कर सकती है, बल्कि विकास कार्यों पर भी सीधा प्रभाव डाल सकती है। कई योजनाएं पंचायत प्रतिनिधियों के अनुमोदन और निर्णयों पर निर्भर होती हैं, ऐसे में किसी भी प्रकार का प्रशासनिक शून्य आम जनता तक सेवाओं की आपूर्ति में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
राज्यपाल ने यह भी कहा कि अब तक की देरी या अनिश्चितता के लिए राज्य सरकार और राज्य निर्वाचन आयोग दोनों ही जिम्मेदार हैं। चुनाव आयोग, संविधान के अनुच्छेद 243-K के तहत, स्वतंत्र रूप से समय पर चुनाव करवाने के लिए बाध्य है।
वहीं सरकार पर यह जिम्मेदारी होती है कि वह चुनाव प्रक्रिया के लिए प्रशासनिक और लॉजिस्टिक समर्थन उपलब्ध करवाए। ऐसे में जब दोनों पक्ष अलग-अलग संकेत दे रहे हों, तो स्पष्ट है कि निर्णय-निर्माण की प्रक्रिया में कहीं न कहीं ठहराव है।
यह विवाद अब राजनीतिक स्वर भी ले सकता है। विपक्ष को सरकार पर सवाल उठाने का अवसर मिलेगा, वहीं सरकार पर यह दबाव बढ़ेगा कि वह जिला प्रशासन और चुनाव आयोग के साथ समन्वय स्थापित करे।
कुल मिलाकर, राज्यपाल का यह बयान हिमाचल की राजनीति और प्रशासन—दोनों के लिए एक चेतावनी है कि यदि समय रहते स्पष्टता और एकरूपता नहीं लाई गई, तो पंचायत चुनावों का मुद्दा आने वाले दिनों में बड़े राजनीतिक और प्रशासनिक संकट में बदल सकता है।






