एप्पल न्यूज, धर्मशाला, तपोवन
वित्तीय घाटे से जूझ रहे हिमाचल प्रदेश की आर्थिक हालत चिंता का विषय बनी हुई है। भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की वर्ष 2021-22 की रिपोर्ट, जिसे शुक्रवार को तपोवन में चल रहे विधानसभा सत्र में प्रस्तुत किया गया, ने कई अहम वित्तीय कमज़ोरियों की ओर संकेत किया है।
🔹 राज्य की अर्थव्यवस्था केंद्र पर निर्भर
रिपोर्ट के मुताबिक, प्रदेश की कुल राजस्व प्राप्तियां ₹12,326.94 करोड़ रहीं, जिनमें से—
स्रोत योगदान
केंद्रीय करों व अनुदानों से 67%
राज्य के अपने संसाधनों से 33%
यानी प्रदेश की अर्थव्यवस्था का दो-तिहाई हिस्सा केंद्र से प्राप्त सहायता पर आधारित है, जबकि राज्य की अपनी कमाई केवल एक-तिहाई है।

🔹 राज्य के अपने राजस्व की स्थिति
प्रदेश सरकार को अपने संसाधनों से मिलने वाली आय मुख्य रूप से इन स्रोतों से आती है—
बिजली बिक्री और रॉयल्टी
आबकारी शुल्क
राज्य GST
वाहन कर
स्टांप ड्यूटी
हालाँकि कर राजस्व में बड़ी वृद्धि नहीं हो सकी और गैर-कर राजस्व में केवल ~₹500 करोड़ की बढ़ोतरी दर्ज की गई, जबकि इसी अवधि में राजस्व खर्चों में कई गुना वृद्धि हुई।
🔹 खर्चों में सबसे बड़ी हिस्सेदारी
कर्जों पर ब्याज भुगतान
कर्मचारियों के वेतन
पेंशन
उपदान (सब्सिडी)
ये व्यय लगातार बढ़ रहे हैं और प्रदेश के वित्तीय ढांचे पर दबाव डाल रहे हैं।
⚠ SDRF फंड के दुरुपयोग का खुलासा
CAG रिपोर्ट में राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (SDRF) के दुरुपयोग के गंभीर आरोप भी सामने आए हैं।
₹22.61 करोड़ SDRF से नियमों के विपरीत खर्च किए गए
यह खर्च लोक लेखा समिति की आपत्तियों और CAG की चेतावनियों के बावजूद जारी रहा
रिपोर्ट ने भविष्य में ऐसे खर्च पर कड़े नियंत्रण की सिफारिश की है।
CAG के आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि—
बढ़ते खर्च
धीमी राजस्व वृद्धि
केंद्र पर अत्यधिक निर्भरता
→ हिमाचल की अर्थव्यवस्था के लिए सबसे बड़े खतरे बने हुए हैं।
प्रदेश की आर्थिक स्थिति को पटरी पर लाने के लिए आय के नए स्रोत विकसित करने, राजस्व संग्रह बढ़ाने और गैर-आवश्यक खर्चों पर रोक लगाने की जरूरत बताई गई है।






