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लिटफैस्ट एजेंडा साहित्यकारों का जमावड़ा, हिमाचली संस्कृति, साहित्य से नहीं कोई सरोकार- सडयाल


पश्चिम बंगाल में लिंचिंग को धर्म विशेष से जोंड़ने, कश्मीर से धारा 370 व 35ए हटाने पर गलत बयानबाजी का जताया विरोध
एप्पल न्यूज़, शिमला

हिमाचल प्रदेश के कसौली में प्रख्यात लेखक स्व. खुशवंत सिंह की याद में होने वाले लिटफैस्ट का हिमाचल और हिमाचल की संस्कृति, साहित्य से कोई सरोकार नहीं रह गया है। इस मंच में जिस तरह माॅब लिंचिग को एक सम्प्रदाय विशेष के साथ जोड़कर प्रस्तुत करने की कोशिश की गई है वह प्रख्यात लेखक खुशवंत सिंह की धर्मनिरपेक्ष सोच का मजाक बन गया है। ये विचार शिमला में मानवाधिकार मंच के प्रदेशाध्यक्ष सेवानिवृत एडीजीपी के.सी. सडयाल ने एक प्रेस विज्ञप्ति में व्यक्त किये।

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उन्होंने इस कार्यक्रम में लेखिका तवलीन सिंह के ब्यान को बेहद दुर्भाग्यपूर्ण बताया है जिसमें उन्होंने पश्चिम बंगाल में मुस्लिम सम्प्रदाय द्वारा हिन्दू परिवार की माॅब लिंचिग को एक सामान्य घटना बताया जबकि मुस्लिमों के साथ हुई ऐसी घटनाओं को ही माॅब लिंचिग माना है। इसके साथ ही तवलीन ने कहा था कश्मीर में धारा 370 और 35ए को गलत तरीके से हटाया गया है। जबकि इन धाराओं को हटाने से पूर्व पूरी संवैधानिक प्रक्रिया का पालन किया गया था। मंच का मानना है जिन निर्णयों मंे भारत सरकार को पूरे देश का समर्थन मिला वहीं कुछ देश विरोधी लोगों को ये बातें पसन्द नहीं आयी है। जिस कारण वे लिटफेस्ट जैसे साहित्यिक मंचों का प्रयोग करके देश विरोधी एंजेडा को आगे कर रहे हैं।
के.सी. सडयाल का कहना है कि कसौली में चल रहे 8वें लिटफेस्ट में आये अधिकतर साहित्यकार एक विचारधारा विशेष के ही पोषक हैं। ये साहित्यकार पहले भी एक विशेष एंजेडा को आगे बढ़ाने को लेकर प्रदेश में एकत्र होते रहे हैं। वर्ष 2017 के लिटफेस्ट में जेएनयु प्रकरण से चर्चा में आये देशद्रोही नारों के आरोपी छात्र संघ नेता कन्हैया कुमार को भी एक बड़े विचारक के रूप में ऐसे ही साहित्यकारों ने अपने कार्यक्रम में बुलाया था। जिससे पता चलता है कि लिटफेस्ट एक विशेष प्रकार के साहित्यकारों का जमावड़ा बन गया है।
मानवाधिकार मंच ने लिटफेस्ट में पाक साहित्यकारों की कमी खलने की बात को देश विरोधी सोच को बढ़ावा देने वाली बताया है। उनका कहना था कि प्रदेश में ऐसे कार्यक्रमों के माध्यम से देश विरोधी सोच को बढ़ावा नहीं मिलना चाहिए। उन्होंने सरकार से अपील की है कि ऐसे कार्यक्रमों को आयोजित करने की अनुमति देने से पूर्व प्रशासन को आयोजकों की मंशा को भी समझ लेना चाहिए।

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