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किसान विरोधी बिलों के खिलाफ रामपुर बुशहर के विभिन्न क्षेत्रों में सीटू युनियनों ने किया विरोध प्रदर्शन

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एप्पल न्यूज़, रामपुर बुशहर

अखिल भारतीय किसान समन्वय समिति के 246 किसान संगठनों के भारत बंद व 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियन के आह्वान पर किसान विरोधी तीन बिलों के खिलाफ आज रामपुर के विभिन्न क्षेत्रों में सीटू से सम्बंधित युनियनों ने बिथल, कोटगाड, मंगलाड, कान्द्री ,झाकड़ी, दतनगर,नाथपा, बाघ, आदि अनेक स्थानों में पर विरोध प्रदर्शन किया । आज क्षेत्र के सैंकड़ों मजदूर अपने कार्यस्थलों व सड़कों पर उतरकर केंद्र सरकार की किसान व मजदूर विरोधी व नीतियों के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं।

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इस धरने को सम्बोधित करते हुए सीटू के रामपुर क्षेत्रीय कमेटी संयोजक नरेंद्र देष्टा, राजेश, पोविन्दर शर्मा, रिंकू राम, राजेश चौहान, हरीश , राजकुमार , सुरेन्द्र जोकटा, प्रेम, विकेश ने चेताया है कि केंद्र की मोदी सरकार किसान व मजदूर विरोधी कदमों से हाथ पीछे खींचें अन्यथा मजदूर व किसान आंदोलन तेज होगा। उन्होंने कहा है कि कोरोना महामारी के इस संकट काल को भी केंद्र की मोदी सरकार किसानों व मजदूरों का खून चूसने व उनके शोषण को तेज करने के लिए इस्तेमाल कर रही हैं। केंद्र सरकार द्वारा संसद के सत्र में कृषि उपज,वाणिज्य एवम व्यापार(संवर्धन एवम सुविधा) बिल 2020,मूल्य आश्वासन(बन्दोबस्ती और सुरक्षा) समझौता कृषि सेवा बिल 2020 व आवश्यक वस्तु अधिनियम(संशोधन) 2020 आदि तीन किसान विरोधी बिलों को संसद से पास करके किसानों के गला घोंटने का कार्य किया गया है। केंद्र सरकार द्वारा 3 विषयों पर कृषि बिल संसद से पास कर लिये है जिन्हें राष्ट्रपति की मंजूरी मिलनी है । ये तीनों अध्यादेश भारत के करोड़ों किसान परिवारों के भविष्य से जुड़े हुए हैं।

एक तरफ सरकार व अनेक अर्थशास्त्री इस बात को मानते हैं कि कोरोनावायरस काल में सिर्फ किसानों की मेहनत/कृषि क्षेत्र के आधार पर ही देश की अर्थव्यवस्था का पहिया घूम रहा है, वहीं दूसरी तरफ केंद्र सरकार \”न्यूनतम समर्थन मूल्य\” (MSP) पर खरीद बन्द कर के किसानों को बर्बाद करने में लगी हुई है।यह नही भूलना चाहिए कि आज भी किसानों को C2+50% के अनुसार फसलों का MSP नहीं मिल रहा है लेकिन उसके बावजूद किसान किसी तरह अपना जीवनयापन कर रहे हैं।

यदि सरकार ने MSP पर खरीद को बंद कर दिया तो खेती-किसानी के साथ-साथ देश की खाद्यान सुरक्षा भी बड़े संकट में फंस जाएगी।

इन कानून के जरिये आने वाले समय में केंद्र सरकार किसानों को मिलने वाले MSP को खत्म करने जा रही है। केंद्र सरकार का दावा है कि इन क़ानूनों से किसानों को फायदा होगा लेकिन असल में किसानों को नहीं बल्कि बड़ी-बड़ी कम्पनियों को फायदा होगा।

वक्ताओं ने कहा कि हमारी केंद्र सरकार के ऊपर WTO का दबाव है कि किसानों को मिलने वाला MSP एवम हर प्रकार की सब्सिडी केंद्र सरकार समाप्त करे। इस से पहले भी कांग्रेस व बीजेपी की सरकारों ने MSP को खत्म करने की तरफ कदम बढ़ाने की असफल कोशिशे की है, लेकिन किसानों के दबाव के सामने उन्हें अपने कदम पीछे खींचने पड़े। अब केंद्र सरकार कोरोना वायरस के कारण किये लॉकडाउन का अनैतिक तरीके से फायदा उठाकर ये तीनों अध्यादेश लेकर आई है।

सरकार को लगता है कि कोरोना वायरस के कारण किसान बड़े पैमाने पर इकठ्ठे हो कर प्रदर्शन नहीं कर सकते इसलिये सरकार ने ऐसे समय यह कदम उठाया है।

पहले व्यापारी फसलों को किसानों के औने-पौने दामों ओर खरीदकर उसका भंडारण कर लेते थे एवम कालाबाज़ारी करते थे, उसको रोकने के लिए Essential Commodity Act 1955 बनाया गया था जिसके तहत व्यापारियों द्वारा कृषि उत्पादों के एक लिमिट से अधिक भंडारण पर रोक लगा दी गयी थी। अब इस नए कानून के तहत आलू, प्याज़, दलहन, तिलहन व तेल के भंडारण पर लगी रोक को हटा लिया गया है।

अब समझने की बात यह है कि हमारे देश में 85% लघु किसान हैं, किसानों के पास लंबे समय तक भंडारण की व्यवस्था नहीं होती है यानि यह अध्यादेश बड़ी कम्पनियों द्वारा कृषि उत्पादों की कालाबाज़ारी के लिए लाया गया है, ये कम्पनियाँ एवम सुपर मार्किट अपने बड़े बड़े गोदामों में कृषि उत्पादों का भंडारण करेंगे एवम बाद में ऊंचे दामों पर ग्राहकों को बेचेंगे।

कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को बढ़ावा दिया जा रहा है जिसमें बड़ी- बड़ी कम्पनियाँ खेती करेंगी एवम किसान उसमें सिर्फ मजदूरी करेंगे। इस नए अध्यादेश के तहत किसान अपनी ही जमीन पर मजदूर बन के रह जायेगा।

इस अध्यादेश के जरिये केंद्र सरकार कृषि का पश्चिमी मॉडल हमारे किसानों पर थोपना चाहती है लेकिन सरकार यह बात भूल जाती है कि हमारे किसानों की तुलना विदेशी किसानों से नहीं हो सकती क्योंकि हमारे यहां भूमि-जनसंख्या अनुपात पश्चिमी देशों से अलग है एवम हमारे यहां खेती-किसानी जीवनयापन करने का साधन है वहीं पश्चिमी देशों में यह व्यवसाय है।

अनुभव बताते हैं कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से किसानों का शोषण होता है। गुजरात में पेप्सिको कम्पनी ने किसानों पर कई करोड़ का मुकदमा किया था जिसे बाद में किसान संगठनों के विरोध के चलते कम्पनी ने वापस ले लिया था।

उन्होंने मांग की है कि केंद्र सरकार कोरोना काल में सभी किसानों का रबी फसल का कर्ज माफ करे व खरीफ फसल के लिए केसीसी जारी करे। किसानों की पूर्ण कर्ज़ माफी की जाए। किसानों को फसल का सी-2 लागत से 50 फीसद अधिक दाम दिया जाए। किसानों के लिए \”वन नेशन-वन मार्किट\” नहीं बल्कि\”वन नेशन-वन एमएसपी\” की नीति लागू की जाए। किसानों व आदिवासियों की खेती की ज़मीन कम्पनियों को देने व कॉरपोरेट खेती पर रोक लगाई जाए।
इन प्रदर्शनों में कपिल, प्रमोद, सुनील, हेम राज, मनोज, सुशील, हुकम, करम चंद, भजन, रवि कौशल, बीरू, अजीत, खुशी राम, श्याम लाल, जयदेव, मंगल, अमर, कुंता, श्यामा, बबली, नीतू, निशा, तारा, चंद्र, सुमंती, इंद्रपाल, सालिग राम , विद्या , जितेंद्र, सुरेंदर, मंगत, मोहन लाल, डोला राम, हेम राज, गोविंद, अशोक आदि उपस्थित रहे।

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