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विजय दिवस- बांग्लादेश के गठन में भारतीय सेना की शौर्य गाथा, हिमाचल के 195 वीरों ने दी थी शहादत, 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों ने टेके थे घुटने

एप्पल न्यूज़, शिमला

16 दिसंबर 1971 को हिन्दुस्तान के जांबाज वीर सपूतों ने जीत का सेहरा बांधकर दुनिया को अपने शौर्य का लोहा मनवाने पर मजबूर कर दिया था। इसी दिन यानि 16 दिसंबर को पूरा देश बड़े ही गर्व के साथ शौर्य दिवस मनाता है। यही वो दिन था जब 1971 के युद्ध में भारत ने पाकिस्तान को धूल चटा दी थी। इसके साथ ही बांग्लादेश को स्वतंत्र करवाकर इतिहास के पन्नों पर स्वर्णिम अक्षरों से यह लिख दिया गया था। पाकिस्तान के साथ हुए 1971 के युद्ध में हिमाचल के योगदान को भी देश भुला नहीं सकता। हिमाचल के 195 सैनिकों ने इस युद्ध में अपने प्राणों की आहुति दी थी।
इस युद्ध में कांगड़ा जिला के 61 सैनिकों, हमीरपुर जिला के 33 सैनिकों, ऊना जिला के 28 सैनिकों, मण्डी जिला के 22 सैनिकों, बिलासपुर जिला के 21 सैनिकों, चम्बा जिला के 13 सैनिकों, सोलन जिला के 7 सैनिकों, शिमला-किन्नौर जिलों के 5 सैनिकों,  कुल्लू और लाहौल-स्पीति जिलों से 3 सैनिकों, सिरमौर जिला से 2 सैनिकों का बलिदान भी शामिल है।

*भारत ने बांग्लादेश को एक नया राष्ट्र बनाने में निभाई थी महत्वपूर्ण भूमिका*

1971 का युद्ध भारत और पाकिस्तान के बीच एक सैन्य संघर्ष था। इसका आरंभ तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान द्वारा 3 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तान द्वारा भारतीय वायुसेना के 11 स्टेशनों पर हवाई हमले से किया गया।  इसके परिणामस्वरूप भारतीय सेना, पूर्वी पाकिस्तान में बांग्लादेश स्वतंत्रता संग्राम में बंगाली राष्ट्रवादी गुटों के समर्थन के लिए तैयार हो गई थी। 48 साल पहले की यही वो तारीख थी। जब पाकिस्तान ने भारत पर हमला बोलकर अपने बंटवारे को न्यौता दिया था। इसके साथ ही भारत-पाकिस्तान युद्ध का आगाज हो गया। 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी एयरफोर्स के लड़ाकू विमानों ने पश्चिमी सीमा पर अमृतसर,  पठानकोट, श्रीनगर, अवंतीपोरा, उत्तरलाई, जोधपुर, अंबाला और आगरा के हवाई अड्डों पर भीषण बमबारी की थी। जिसका अंजाम उसे 16 दिसंबर को भुगतना पड़ा था।

भारत के पूर्वी सैन्य कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी बलों के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल ए. ए- के नियाजी ने आत्मसमर्पण कर दिया था। जिसके बाद 17 दिसंबर को 93000 पाकिस्तानी सैनिकों को युद्धबंदी बनाया गया। इस युद्ध में करीब 3900 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थ,े जबकि 9851 घायल हुए थे। पाकिस्तान में 1970 के दौरान चुनाव हुए] जिसमें पूर्वी पाकिस्तान आवामी लीग ने बड़ी संख्या में सीटें जीती और सरकार बनाने का दावा किया] परन्तु जुल्फिकार अली भुट्टो (पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी इस बात से सहमत नहीं थे] इसलिए उन्होंने विरोध करना शुरू कर दिया था। युद्ध के मैदान में जैसे-जैसे वक्त बीतता जा रहा था, भारत का दम दिखने लगा था] भारतीय सेना ने जेसोर और खुलना पर कब्जा कर लिया था। 14 दिसंबर को भारतीय सेना ने एक गुप्त संदेश को पकड़ लिया। इसके तहत सुबह 11 बजे ढाका के गवर्नमेंट हाउस में एक अहम बैठक होने वाली थी। इस मीटिंग में पाकिस्तानी प्रशासन के बड़े अधिकारी हिस्सा लेने वाले थे। भारत ने तय किया कि इसी समय उस भवन पर हमला किया जाए। बैठक के दौरान ही भारतीय विमानों ने गवर्नमेंट हाउस के छत को बम से उड़ा दिया गया। जिसके बाद गवर्नर मलिक ने अपना इस्तीफा लिखा। उस समय हालात इतने खराब हो गए थे कि सेना का प्रयोग करना पड़ा। अवामी लीग के अध्यक्ष शेख मुजीबुर रहमान पूर्वी पाकिस्तान के कद्दावर नेता थ]े उनको गिरफ्तार कर लिया गया। यहीं से पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच दिक्कतें शुरू हो गई थीं। धीरे&धीरे इतना विवाद बढ़ गया की पूर्वी पाकिस्तान के लोगों ने पश्चिमी पाकिस्तान से पलायन करना शुरू कर दिया था] ये लोग सेना के अत्याचार से इतने पीड़ित हो गए थे कि मजबूरन उनको पलायन करना पड़ा। भारत में उस समय इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थी। पूर्वी पाकिस्तान से शरणार्थी भारत आ गए थे और उन्हें भारत में सुविधाएं दी जा रही थी क्योंकि वे भारत के पड़ोसी देश से आए थे। इन सबको देखते हुए पाकिस्तान ने भारत पर हमला करने की धमकियां देना शुरू कर दिया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कोशिश की] ताकि युद्ध न हो और कोई हल निकल जाए] शरणार्थी सही सलामत घर को लौट जाएं परन्तु ऐसा हो न सका। ये शरणार्थी पूर्वी पाकिस्तान की सीमा से लगे भारतीय राज्यों में पहुंच गए थे। ऐसा कहा जाता है कि करीब 10 लाख लोग भारत में शरणार्थी बनकर आ गए थे। ये स्थिति देख कर भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारतीय फौज को युद्ध की तैयारी करने का आदेश दिया और दूसरी तरफ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान पर दबाव बनाने की कोशिश शुरू कर दी थी। तत्कालीन भारतीय थल सेनाध्यक्ष सैम मानेकशॉ की मौजूदगी में अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हेनरी किसिंजर के साथ हुई एक बैठक में इंदिरा ने साफ कर दिया कि यदि अमेरिका पाकिस्तान को नहीं रोकेगा तो भारत पाकिस्तान पर सैनिक कार्रवाई के लिए मजबूर होगा। भारत के कई राज्यों में शांति भी भंग हो रही थी। इंदिरा गांधी ने पूर्वी पकिस्तान में जो हो रहा था उसको पाकिस्तान का अपना अंदरूनी मामला नहीं कहा क्योंकि इन सबके कारण भारत में शांति भंग हो रही थी। अमेरिका के पाकिस्तान की तरफ समर्थन को देखते हुए इंदिरा गांधी ने 9 अगस्त 1971 को सोवियत संघ के साथ ऐसा समझौता किया जिसके तहत दोनों देशों ने एक दूसरे की सुरक्षा का भरोसा दिया। पूर्वी पाकिस्तान में हालात खराब होते जा रहे थे। पुलिस] पैरामिलिट्री फोर्स] ईस्ट बंगाल रेजिमेंट और ईस्ट पाकिस्तान राइफल्स के बंगाली सैनिकों ने पाकिस्तानी फौज के खिलाफ बगावत करके खुद को आज़ाद घोषित कर दिया था। भारत ने भी मदद की और वहां के लोगों को फौजी ट्रेनिंग दी जिससे वहां मुक्ति वाहिनी सेना का जन्म हुआ। पाकिस्तान के विमानों ने नवंबर की आखिरी सप्ताह में भारतीय हवाई सीमा में दाखिल होना शुरू कर दिया था। इस पर भारत ने पाकिस्तान को चेतावनी दी परन्तु पाकिस्तानी राष्ट्रपति याहिया खान ने 10 दिन के अंदर युद्ध की धमकी दे दी। भारत के कुछ शहरों में 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी विमानों ने बमबारी शुरू कर दी। भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उसी वक्त आधी रात को ऑल इंडिया रेडियो के जरिए पूरे देश को संबोधित किया और कहा कि कुछ ही घंटों पहले पाकिस्तानी हवाई जहाजों ने हमारे अमृतसर] पठानकोट] फरीदकोट, श्रीनगर] हलवारा] अम्बाला] आगरा] जोधपुर] जामनगर] सिरसा और सरवाला के हवाई अड्डों पर बमबारी की है] और इसी प्रकार भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हो गया। युद्ध के तहत इंदिरा गांधी ने भारतीय सेना को ढाका की तरफ कूच करने का आदेश दे दिया और भारतीय वायुसेना ने पश्चिमी पकिस्तान के अहम ठिकानों और हवाई अड्डों पर बम बरसाने शुरू कर दिये। 4 दिसंबर, 1971 को ऑपरेशन ट्राईडेंट भारत ने शुरू किया। इस ऑपरेशन में भारतीय नौसेना ने बंगाल की खाड़ी में समुद्र की और से पाकिस्तानी नौसेना को टक्कर दी और दूसरी तरफ पश्चिमी पाकिस्तान की सेना का भी मुकाबला किया। भारतीय नौसेना ने 5 दिसंबर] 1971 को कराची बंदरगाह पर बमबारी कर पाकिस्तानी नौसेना मुख्यालय को तबाह कर दिया था। इसी समय इंदिरा गांधी ने पूर्वी पाकिस्तान को एक नया राष्ट्र बांग्लादेश के रूप में बनाने का एलान कर दिया था यानी अब बांग्लादेश एक नया राष्ट्र होगा। अब वो पकिस्तान का हिस्सा नहीं बल्कि एक स्वतंत्र राष्ट्र होगा। अप्रत्यक्ष रूप से इस युद्ध में अमरीका और सोवियत संघ दोनों महाशक्तियां शामिल हुई थी। ये सब देखते हुए 14 दिसंबर को भारतीय सेना ने ढाका में पाकिस्तान के गवर्नर के घर पे हमला किया, उस समय पाकिस्तान के सभी बड़े अधिकारी बैठक करने के लिए इकट्टा हुए थे। इस हमले से पकिस्तान हिल गया और जनरल नियाजी ने युद्ध विराम का प्रस्ताव भेज दिया। परिणामस्वरूप 16 दिसंबर 1971 को दोपहर के करीब 2ः30 बजे आत्मसमर्पण की प्रक्रिया शुरू हुई और उस समय लगभग 93]000 पाकिस्तानी सेना ने आत्मसमर्पण किया था। इस प्रकार 16 दिसंबर, 1971 को बांग्लादेश का एक नए राष्ट्र के रूप में जन्म हुआ और पूर्वी पाकिस्तान, पाकिस्तान से आजाद हो गया। ये युद्ध भारत के लिए ऐतिहासिक युद्ध माना जाता है। इसीलिए देशभर में भारत की पाकिस्तान पर जीत के उपलक्ष्य में 16 दिसंबर को विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि वर्ष 1971 के युद्ध में तकरीबन 3]900 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे और लगभग 9,851 घायल हुए थे। भारत ने बांग्लादेश को एक नए राष्ट्र के रूप में उभरने में मदद की थी और पाकिस्तान को युद्ध में हराया था इसलिए अपनी जीत की कामयाबी के रूप में सम्पूर्ण राष्ट्र में विजय दिवस मनाया जाता है।

*हिमाचल में भी प्रहार दिवस के रूप में मनाया जाता है ये दिन*

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक भारतीय सेना के इस शौर्य दिवस (16 दिसंबर को प्रतिवर्ष ‘प्रहार महायज्ञ दिवस’ के रूप में मानते है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ राष्ट्रीय स्तर विजय दिवस को अपनी शाखाओं में दंड प्रहार यज्ञ दिवस के रूप में मनाता है। इस दिन संघ के स्वयंसेवक सभी शाखाओ में अधिक से अधिक दंड प्रहार करके  अपना शौर्य दिखाते हुए, सेना के मनोबल को बढ़ाते हुए भारतीय सेना के शौर्य को स्मरण करते है। यह प्रक्रिया एक शारीरिक अभ्यास है जिससे शारीरिक बल और स्वास्थ्य लाभ होता है। स्वयंसेवक अधिक से अधिक दंड प्रहार लगाने की कोशिश करते हैं जिससे खेल भावना का विकास होता है।

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