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शिमला में कुत्तों का आतंक-दहशत में लोग, हर महीने सैंकड़ों मामले आए सामने, 4 माह में 439 हुए शिकार

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एप्पल न्यूज़, शिमला

राजधानी शिमला में बंदरो और कुत्तो की सबसे अधिक समस्या है शहर के हर वार्ड में कुत्तो की सबसे ज्यादा समस्या है लोग काफी परेशान है। आवारा कुत्तो की समस्या लगातार बढ़ने से दहशत भी बढ़ गयी है।

रात के समय ये मामले बढ़ जाते है कहीं न कहीं से इन बेसहारा कुत्तों द्वारा लोगों को काटने की सूचना अकसर मिलती है। पर्यटकों को भी कुत्तों द्वारा काटने के मामले आते हैं।

 कुत्तों के आतंक के कारण राजधानी में पैदल गुजरना तक मुश्किल हो गया है। कई बार प्रशासन के समक्ष जनता गुहार लगा चुकी है, लेकिन कुत्तों के आतंक से कोई निजात नहीं मिल पाई है।

राजधानी पर्यटन की दृष्टि से एक अलग महत्व रखती है, लेकिन शहर के ऐतिहासिक क्षेत्रों में बेसहारा कुत्तों की संख्या लगातार बढ़ रही है। राजधानी के जिला अस्पताल दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल की अगर बात करें तो अकेले इस अस्पताल में पिछले 4 महीनों में 439 कुत्तो के काटने के मामले सामने आए है।

अस्पताल के MS लोकेन्द्र ने बतया कि जानवरों के काटने में कोई कमी नहीं आई है जो आंकड़ा पुराना है उससे अधिक मामले आ रहे हैइसके अलावा नगर निगम की डॉग एडॉप्शन  योजना के बाद भी इसमें कोई कमी नहीं आई है।

उन्होंने बताया अकेले इसी अस्पताल में हर माह सैंकड़ों मरीज जानवरों के काटने के पहुंचते हैं जिन्हें एंटी रेबीज का टीका लगाकर वापिस घर भेजा जाता है। इसके अलावा अस्पताल में रोजाना आठ से दस मामले आते हैं जिनका मुफ्त में उपचार किया जाता है।

राजधानी शिमला में आवारा कुतों और बंदरों का आतंक इतना बढ़ गया है कि शहर के किसी भी रस्ते पर अकेले नहीं चल सकते हैं। बंदरों और कुत्तों का आतंक शहर में इस कद्र बढ़ गया है कि माल और रिज में कुछ भी खाने पीने की चीज़ों को पर्यटकों और स्थानीय लोगों से छीन कर आसानी से भाग जाते हैं।

नगर निगम शिमला ने आवारा कुत्तों से निजात पाने के लिए शिमला में डॉग एडॉप्शन योजना शुरु की है जिसके तहत निगम आवारा कुत्तों को गोद लेने पर पार्किंग और गारबेज फीस की फ्री सेवा देता है।

अब तक इस योजना के तहत करीब 150 लोग फायदा उठा चुके हैं लेकिन शहर में समस्या अभी भी जस की तस बनी हुई है।

निगम की इस योजना के बाद भी शहर के सभी वार्डों में नवजात कुतों से लेकर बड़े आवारा कुत्तों की संख्या पर कोई लगाम नहीं लग पाई है ! जिससे अब निगम की डॉग एडॉप्शन योजना पर भी सवाल उठने लगे हैं।

क्या निगम ने अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए यह योजना शुरु की है या फिर वाक्य ही शहर में आवारा कुत्तों की बढती संख्या पर लगाम लगी है ! लेकिन शहर में नवजात कुत्तों और आवारा कुत्तों को देखते हुए प्रशासन के दावे खोखले साबित होते दिखाई दे रहे है ! 

स्थानीय लोगों का कहना है शहर में ऐसी कोई भी जगह नहीं है जहां पर कुत्ते नहीं है। सुबह के समय बच्चों को अकेले स्कूल भेजना खतरे से खाली नहीं है। बच्चों पर कुत्ते हमला कर देते हैं। इन कुत्तों के लिए कोई न कोई नीति बनाई जानी चाहिए ताकि लोगों को परेशानियों का सामना न करना पड़े।

कुत्ते के काटने का सबसे ज्यादा खतरा महिलाओं और बच्चों को होता है ये ज्यादातर बच्चों पर ही हमला करते हैं इसके बावजूद प्रशासन इस समस्या के प्रति गंभीर नहीं है। लोगों का रास्ते से गुजरना मुश्किल हो गया है। रास्ते में कुत्ते किसी भी जगह हमला कर देते हैं।

सरकार को चाहिए कि इन आवारा कुतों को मार दे या इनको जिस तरह गोशालाएं होती है इनके लिये भी ऐसी ही व्यवस्था की जाए ताकि जनता को इस समस्या से निजात मिल सके।

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