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विशेष- ये हादसों का शहर है, संभल संभल के चला करो, ये डंगे, ये पुल पीडब्ल्यूडी के बनाए हैं, तुम डर डर के रहा करो

एप्पल न्यूज़, शिमला

“ये हादसों का शहर है, संभल संभल के चला करो,
ये डंगे, ये पुल पीडब्ल्यूडी के बनाए हैं, तुम डर डर के रहा करो”

सच है…आज पीडब्ल्यूडी द्वारा बनाए किसी डंगे या किसी पुल से गुजरते हुए बदन कांप जाता है…… कि अभी गिरा कि अभी। हल्की सी बारिश, बरसात पीडब्ल्यूडी की दुश्मन बन बैठी है, पर पानी की शिकायत करें तो किससे…..आप सांठगांठ, मिलावट, कमीशन के बल पर आंखें मूंद कर इनकी “परफेक्ट” रिपोर्ट दे दीजिए, पोल आपकी पानी ही खोलेगा।

फिर जवाबदेही किसी की नहीं, नीचे से ऊपर तक का अमला सक्रिय हो जाता है और सारा दोष पानी का, बरसात का, बर्फ का…….आप सब फटाफट बरी, पाक साफ, सरकारी शाबाशियों, पदोन्नतियों से सराबोर…..सरकार, मंत्री खुश। फिर काम तो मिला…… फिर वही सब.. कितना झूठ सहते होंगे कागज, सरकारी नोटशीट और बेचारी फाइलें…..?

इस बरसात में बहुत सी जगह पीडब्ल्यूडी का बनाया कोई पुल या सड़क बची होगी। सब प्राकृतिक आपदाओं के नाम, बादलों के नाम……सरकारें बैठी है भरपाई के लिए।

ये जो मिलावट का गोरख धंधा चल रहा है, पगडंडी से सड़कों तक, सड़कों से राज्य राजमार्गों तक और वहां से होता हुआ अब फोरलेन तक…..पर्यटन विकास के नाम पर हिमाचल टुकड़े टुकड़े किया जा रहा है….
और हम सब उन टुकड़ों की ढेकली बना बना, चिन चिन कर खेलते चले जा रहे हैं।
सभी को सब कुछ चाहिए….अच्छा वेतन, अच्छी पेंशन, सरकारी राशन, आंगन में सड़क…..पर नदियां किसी को नहीं चाहिए, पेड़ किसी को नहीं चाहिए, पहाड़ किसी को नहीं चाहिए…… हादसों पर हम नहीं चिल्लाते कि कैसे हुए, कौन जिम्मेदार था, चिल्लाते दर्द से हैं और फिर टूटे घर जमीन और बिछुड़े परिजनों के मृत पेपर झोले में डालकर प्रधानों, मंत्रियों के दरबार में गुहार लगाते चक्कर पर चक्कर।

क्या ईमानदारी, गुणवत्ता के कोई मापदंड नहीं है, नियम कानून नहीं है, किसी इंजीनियर अफसर की जवाबदेही तय नहीं है….. काहे होगी भैय्या…..पानी बादल बरसात को कहां पकड़ेंगे…..?

शुक्र है शिमला कालका रेल मार्ग कहीं पीडब्ल्यूडी के पास नहीं है अन्यथा…..? आप समझ गए होंगे ही।

एक फोटो डंगे का शेयर कर रहा हूं। यह शिमला ग्रैंड होटल के नीचे लिटन ब्लॉक बिल्डिंग का है। काली बाड़ी को जाती सड़क पर। 1829 में लगा था। न रेत न सीमेंट, आज तक दबंगता और शान से खड़ा है। शिमला शहर में कितने ऐसे डंगे आज भी शान से खड़े हैं…..वह आधुनिक तकनीक का समय नहीं था, मशीनों का नहीं था, हाथ और परंपरा, दिमाग और ऑनेस्टी का था। मेजर बड़ोग को याद कीजिए, बड़ोग सुरंग के सिरे नहीं मिले तो ब्रिटिश सरकार ने एक रुपए फाइन कर दिया। शर्म अपमान से मेजर बड़ोग ने अपने को शूट कर दिया…..इधर न कोई पुल बचा न बेचारा डंगा…..फिर भी न ठेकेदारों को शर्म, न उन्हें पास करने वालों को….? कितनी विडंबना है। क्या आपने सुना कभी किसी को फाइन या सजा हुई…? उसके बदले फिर रिवाइज एस्टीमेट, वही ठेकेदार और वही ढेकली का खेल। याद कीजिए करोड़ रुपए से लगे बालूगंज चौक के विशाल डंगे को, पहले दिन उद्घाटन और दूसरे दिन धराशाही।
शिमला कालका रेल मार्ग पर कितने पुल है, सब तकरीबन 130 साल पुराने। कनोह का चार मंजिला पुल तो इंजीनियरिंग का नायाब अनूठा उदाहरण है…..चार मंजिला, भारतीय रेल मार्ग पर बना सबसे ऊंचा मजबूत पुल……उसे ही देख लिए होते, सीखते कुछ। नहीं हिमाचल है, सब देव प्रकोप, सब भगवान की मर्जी, सब नदियों का किया धरा, सब पहाड़ों की बेईमानी। आपका कुछ नहीं….वही कुर्सी, वही उसके घुमाव, वही आलीशान दफ्तर, वही नोटशीट….प्रदेश और जनता जाए भाड़ में।

यह सब देख कर मन रोता है। आहत होता है….हम आधुनिक नहीं पीछे पिछड़ते जा रहे हैं…..हमारी सोच, ईमानदारी, हमारी जवाबदेही मर चुकी है……..।

साभार
एस आर हरनोट, लेखक व साहित्यकार शिमला
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