IMG-20251108-WA0021
previous arrow
next arrow

हिमाचल में “वित्तीय संकट” के बीच मंत्रियों के “यात्रा भत्ते” 24% बढ़े, समय और प्राथमिकताओं पर उठे बड़े सवाल

IMG-20251111-WA0008
previous arrow
next arrow

एप्पल न्यूज़, शिमला

हिमाचल प्रदेश सरकार ने गहरी आर्थिक तंगी और बढ़ते कर्ज़ के बीच मंत्रियों के यात्रा भत्तों में बढ़ोतरी कर दी है। सरकार का यह फैसला न केवल जनता के बीच गुस्सा पैदा कर रहा है, बल्कि उसकी वित्तीय नीतियों और प्राथमिकताओं पर भी गंभीर सवाल खड़े कर रहा है।

राज्य सरकार पिछले कई महीनों से वित्तीय स्थिति को लेकर लगातार “मुश्किल दौर” की बात कर रही है, विभागों को खर्च घटाने के निर्देश दे रही है और कर्मचारियों को बकाया भुगतान में देरी का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे समय में मंत्रियों के भत्तों में बढ़ोतरी को लेकर आलोचना होना स्वाभाविक है।

नई अधिसूचना के अनुसार, मंत्रियों के लिए यात्रा भत्ते को ₹18 प्रति किलोमीटर से बढ़ाकर ₹25 प्रति किलोमीटर कर दिया गया है, जबकि दैनिक भत्ते को ₹1,800 से बढ़ाकर ₹2,500 किया गया है। यह संशोधन मंत्रियों के वेतन और भत्ते अधिनियम, 2000 के तहत लागू किया गया है और अब इसे हिमाचल प्रदेश मंत्रियों के यात्रा भत्ता (संशोधन) नियम, 2025 कहा जाएगा।

दिलचस्प बात यह है कि यह प्रस्ताव 2024 में ही पास हो चुका था, लेकिन वित्तीय संकट के चलते इसे लागू नहीं किया गया था। अब जब राज्य की आर्थिक स्थिति और अधिक चुनौतीपूर्ण मानी जा रही है, तब इस फैसला लागू करने को लेकर और भी ज्यादा आलोचना हो रही है।

यह भी ध्यान देने योग्य है कि पिछले कुछ महीनों में ही विधायकों, मंत्रियों और सदन के पीठासीन अधिकारियों के वेतन और भत्ते में लगभग 24% की बढ़ोतरी की गई थी। यात्रा भत्ते में इस नई वृद्धि के साथ, राज्य सरकार पर सालाना ₹25 करोड़ से अधिक का अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ने का अनुमान है।

सरकार का दावा है कि भत्तों में यह संशोधन लंबे समय से लंबित था और बढ़ती कीमतों के अनुरूप इसे अद्यतन करना आवश्यक था। लेकिन आलोचकों का कहना है कि वित्तीय संकट के दौर में यह ‘समय’ बेहद अनुचित और “जनभावनाओं के खिलाफ” है।

राज्य सरकार की आर्थिक स्थिति किसी से छिपी नहीं है। हिमाचल प्रदेश बढ़ते कर्ज़ के बोझ से दबा हुआ है और उधारी की सीमाएं तंग होती जा रही हैं। केंद्र सरकार द्वारा वित्तीय अनुशासन को लेकर कड़े निर्देश दिए जाने के बाद राज्य के पास खर्च करने की क्षमता और सीमित हो गई है।

कई विभागों को गैर-जरूरी खर्च रोकने के आदेश हैं, जबकि पे-एंड-अकाउंट ऑफिसेज़ में बिलों के भुगतान में लगातार देरी की शिकायतें सामने आ रही हैं। कर्मचारियों के वेतन, पेंशन और जीपीएफ निकासी में भी समय-समय पर रुकावटें देखी जा रही हैं। ऐसे वातावरण में मंत्रियों के भत्ते बढ़ाना कहीं न कहीं आम जनता के लिए यह संदेश देता है कि सरकार ‘ऊपर’ के खर्चों को प्राथमिकता दे रही है।

राजनीतिक विश्लेषकों की राय में विधायकों और मंत्रियों के भत्ते बढ़ाने का मुद्दा भारतीय राजनीति में अक्सर सर्वदलीय सहमति के साथ पारित होता है, चाहे सत्ता पक्ष हो या विपक्ष। विधानसभा के भीतर इस पर गंभीर विरोध की उम्मीद कम ही की जाती है क्योंकि विधायी वर्ग आम तौर पर ऐसे संशोधनों से लाभान्वित होता है।

लेकिन समस्या विधानसभा के बाहर खड़ी होती है, जहां जनता मितव्ययिता की सीख सुन रही है और स्वयं आर्थिक तंगी से जूझ रही है। इसीलिए इस बार विरोध की आवाजें जनता और सोशल मीडिया से ज्यादा तेज़ी से उठ रही हैं।

सरकार का तर्क है कि यात्रा भत्ता वर्षों से नहीं बढ़ाया गया था और मंत्रियों को उनके आधिकारिक दौरे के दौरान वास्तविक खर्चों की तुलना में कम भुगतान मिल रहा था। परंतु विरोध करने वाले यह सवाल उठा रहे हैं कि क्या इस फैसले को शीतकालीन सत्र के बाद तक टाला नहीं जा सकता था? क्या इसे राज्य की हालत सुधरने तक रोका नहीं जाना चाहिए था? क्या यह उचित नहीं होता कि सरकार पहले कर्मचारियों के लंबित भुगतानों और विभागीय देनदारियों को प्राथमिकता देती?

इस बढ़ोतरी का राजनीतिक प्रभाव भी महत्वपूर्ण है। विपक्ष इसे “प्राथमिकताओं में गड़बड़ी” और “वित्तीय अनुशासन की विफलता” का उदाहरण बताकर सरकार को घेर सकता है। वहीं सरकार का बचाव इस बात पर निर्भर करेगा कि वह इसे किस तरह “सामान्य प्रशासनिक सुधार” के रूप में पेश करती है।

लेकिन इतना तय है कि जनता की नज़र में यह कदम एक कड़वी विडंबना जैसा लगता है—एक तरफ सरकार वित्तीय संकट का हवाला देते हुए योजनाओं को रोक रही है और दूसरी तरफ मंत्रियों की सुविधाओं में इजाफा कर रही है।

अंततः आने वाला शीतकालीन सत्र यह तय करेगा कि सरकार इस फैसला का बचाव कैसे करती है और राजनीतिक तौर पर यह मुद्दा कितना गर्माता है। लेकिन जनता के बीच यह धारणा पहले ही बन चुकी है कि आर्थिक संकट के दौर में सरकार ने अपनी सुविधाओं को प्राथमिकता दी—और यही बात इसे एक साधारण प्रशासनिक निर्णय से उठाकर एक बड़ा राजनीतिक विवाद बना रही है।

Share from A4appleNews:

Next Post

SJVN ने हिमाचल के विद्यार्थियों के मध्य ऊर्जा संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए राज्य स्तरीय पेंटिंग प्रतियोगिता का किया आयोजन

Thu Nov 20 , 2025
एप्पल न्यूज, शिमला एसजेवीएन ने अपने कारपोरेट मुख्यालय, शिमला में हिमाचल प्रदेश के स्कूली विद्यार्थियों  के लिए राज्य स्तरीय पेंटिंग प्रतियोगिता का सफलतापूर्वक आयोजन किया। इस कार्यक्रम  में हिमाचल प्रदेश के माननीय स्पीकर, श्री कुलदीप सिंह पठानिया मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे, जिन्होंने पुरस्कार वितरण समारोह की अध्यक्षता की। अजय कुमार शर्मा , निदेशक(कार्मिक), एसजेवीएन ने […]

You May Like

Breaking News