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हादसा नहीं हत्याएं हैं ये…?

एप्पल न्यूज़, शिमला

हत्याएं और मौतें बहुत तरह की होती हैं। कुछ करवाई जाती हैं, कुछ हो जाती हैं और कुछ जानबूझ कर कर ली जाती हैं। इसमें जाने, अनजाने, भगवान की मर्जी इत्यादि इत्यादि जैसे शब्द फटाफट सक्रिय हो जाते हैं….लेकिन लापरवाही से हुई हत्याओं को या तो दबा दिया जाता है या फिर आंसू बहा, शोक वक्त कर, श्रद्धांजलि देकर भुला दिया जाता है।

कुल्लू की सैंज घाटी की शैंशर पंचायत के जंगला गांव में सोमवार की सुबह जो हादसा हुआ और तीन छात्रों समेत 13 बेकसूर लोगों ने अपनी जाने गवाईं क्या इसे हम एक दुर्घटना मानकर भूल जायेंगे…..? जी, बिल्कुल……….सभी श्रद्धांजलियां अर्पित करेंगे, शोक संदेश अखबारों में छपेंगे, मौके पर मुख्य मंत्री जी आयेंगे….स्थानीय प्रशासन के अधिकारी आएंगे….विधायक आएंगे(यह अलग बात है की वे लोगों का गुस्सा देखकर खिसक जायेंगे)….मुआवजे का एलान होगा…मजिस्ट्रेट जांच होगी…. यानि सबकुछ वही पुराने जुमले…..रिपीट होंगे…?

लेकिन इन सभी में जो मुख्य बात है वह कभी नहीं होगी न सामने आएगी…..और लीपापोती में धीरे धीरे फाइलों में दफन हो जायेगी….सजा या तो बस चालक को मिलेगी या बस के कल पुर्जों को……या बेचारे ईश्वर को……उसे कभी नहीं जो वास्तव में इस हत्या या हादसे या मौत के पीछे होगा ?

मेरे कुछ प्रश्न स्थानीय प्रशासन से हैं…..?
जब इस बस का रूट कुल्लू से न्यूली था तो दस किलोमीटर आगे शैंशर तक इसे किसकी मर्जी या परमिशन से चलाया जा रहा था…? क्या दस सालों से निजी बस ऑपरेटर की इस अवैध…गैरकानूनी….लापरवाही न आरटीओ को दिखी, न मजिस्ट्रेट जी को किसी ने बताई जो अब जांच करेंगे, न पुलिस को भनक लगी न विधायक को पता चला और न स्थानीय पंचायत को….रही जनता की बात तो वह तो कभी की अंधी और बहरी हो चुकी है…….उसे सुविधा चाहिए….जैसे भी मिले….बस एक ही टायर पर क्यों न चल रही हो…..जबकि इस मनमर्जी का विरोध स्पॉट पर उसे ही करना चाहिए था।

पता नहीं जिन आरटीओ के दफ्तरों पर लाखों रुपए सरकार खर्च रही है कि परिवहन व्यवस्था दुरुस्त रहे उनका रिकॉर्ड बस के हादसे के तुरंत होते ही क्यों निकल जाता है कि ये बस दस साल से अवैध चल रही थी, रूट कहीं का था बस कहीं जा रही थी…. पुरानी थी…..चालकों परिचालकों के पास लाइसेंस नहीं थे…..आदि आदि।…क्या आरटीओ ने दस सालों में इस बस को या इसके रूट को कभी चेक किया या वे निजी ऑपरेटरों के चाय पानी से ही खुश होते रहे….?

यह कथा या सच्चाई केवल इस हादसे की नहीं है….तमाम उन निजी बसों की है जो न जाने कब से हिमाचल के शहरों और गांव गांव में चल दौड़ रही है। हर कोई हादसा हादसा चिल्लाता आज दुखी है, आंसू बहता दिख रहा है…..परंतु दो चार दिनों के बाद सब सामान्य…?

बस अगर कोई तिल तिल मरता बिलखता रहेगा वह एक मां, एक दादी, एक पत्नी, एक पति या कुछ परिजन होंगे जिन्होंने इस हादसे में स्कूल जाते नन्हें खोए होंगे और काम मजदूरी या दफ्तर जाते परिवार के लोग….वे आंसू न जांच से सूखेंगे, न श्रद्धांजलि से और न मुआवजे से और न उनके घर शोक व्यक्त करने आए किसी नेता वेता या अफसर से।

आप अखबारों की खबरों से इस दर्द को भले ही आज थोड़ी देर जरूर महसूस करेंगे लेकिन फिर वही बस होगी…वही चालक, वही प्रशासन, वही सरकार और वही लीगल इलीगल काम काज….हादसे ईश्वर की मर्जी…बस जी इतनी ही उम्र थी…मौत का तो बहाना होता है….जहां की लिखी वहीं तो होनी है…..जो आएगा वह एक दिन जाएगा ही….मौत के आगे किस की चलेगी…..? काश! ईश्वर। भगवान जी के पास धर्मराज के दफ्तर में एक ऐसा ईमानदार और कुशल आरटीओ ऑफिस या प्रशासन होता कि इन मनमर्जियों के कानूनों की समय रहते जांच हो जाया करती…?

अब आप समझ गए होंगे कि कुल्लू हादसा भगवान की मर्जी नहीं था…विकट लापरवाही थी…..और 13 लोगों की मौत नहीं “हत्या” की गई है…..आप समझदार हैं, पढ़े लिखे हैं….सब जानते हैं ये हत्या की किसने हैं….? पर नहीं बोलेंगे न आप……….गांधी जी के शिष्य हैं जो….बुरा न देखो, बुरा न सुनो, बुरा न बोलो…..?

मैं उन परिवारों के साथ गहरे सदमे में हूं जिनके परिजन बेकसूर मारे गए, मेरी आंखों में आंसू नहीं उन बच्चों के बस्ते, किताबें और पैन हैं जो पता नहीं कितनी बेदर्दी से बस के नीचे कुचले गए……पर मेरे पास भी वही चार शब्द हैं……श्र द्धां ज लि।

साभार…..

एस आर हरनोट
निष्क्रिय प्रशासन और गूंगी जनता का एक प्रतिनिधि..?

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