“भुंडा महायज्ञ”- हिमाचल की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर का पर्व, आज होगी “बेड़ा” परम्परा

एप्पल न्यूज, रोहड़ू शिमला

हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले के रोहड़ू के दलगांव में आयोजित भुंडा महायज्ञ क्षेत्रीय संस्कृति, परंपराओं और आस्था का एक अद्वितीय आयोजन है।

इस महायज्ञ का आयोजन लगभग बारह वर्षों में एक बार होता है और इसमें स्थानीय देवताओं की उपासना, परंपरागत रस्मों और सांस्कृतिक आयोजनों का अनूठा संगम देखने को मिलता है।

इस वर्ष यह आयोजन लाखों श्रद्धालुओं की उपस्थिति और उत्साह के साथ हो रहा है।

तीन महत्वपूर्ण रस्में:
भुंडा महायज्ञ के दौरान तीन मुख्य रस्में निभाई गईं, जो आयोजन की धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता को दर्शाती हैं।

  1. धूड़ पीटने की रस्म:
    इस रस्म में देवता महेश्वर, देवता बौंद्रा और मेजवान देवता बकरालू के मध्य परंपरागत प्रक्रिया का निर्वहन किया गया। देवता महेश्वर ने “शिर लगाकर” इस रस्म को संपन्न किया। धूड़ पीटने की रस्म के दौरान श्रद्धालुओं ने तलवार, डंडे और खुखरी के साथ पारंपरिक नृत्य किया। देवताओं की जयकारों से गूंजते माहौल में यह रस्म एक अद्भुत दृश्य प्रस्तुत कर रही थी। हजारों श्रद्धालु इस अवसर पर उपस्थित थे, जिनका उत्साह अद्वितीय था।
  2. फेर की रस्म:
    दूसरी रस्म में रंटाडी के मोहरिष महर्षि देवता की अगुवाई में फेर की परिक्रमा शुरू की गई। इस रस्म में रंटाडी खूंद के हजारों देवलु शामिल हुए। अस्त्र-शस्त्र, रणसिंगा, करनाल और ढोल-नगाड़ों के साथ चौंरी की रस्म निभाई गई। इस परिक्रमा में लगभग तीन घंटे का समय लगा, और यह दलगांव के विभिन्न क्षेत्रों से गुजरती हुई समाप्त हुई। परिक्रमा के दौरान वातावरण पूरी तरह आध्यात्मिक और सांस्कृतिक उत्सव में डूबा हुआ था।
  3. शिखा पूजन:
    तीसरी और सबसे महत्त्वपूर्ण रस्म शिखा पूजन की थी। इस रस्म में मेजवान देवता बकरालू के तीन मंदिरों की छत पर चढ़कर माली गुर और ब्राह्मणों ने मंत्रोचारण किया। चारों दिशाओं में मंत्र पढ़कर पूजा संपन्न की गई। यह रस्म आयोजन का आध्यात्मिक केंद्र बिंदु थी और इसे महायज्ञ की पूर्णता के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।

भुंडा महायज्ञ का आकर्षण:
भुंडा महायज्ञ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि यह हिमाचल प्रदेश की प्राचीन परंपराओं और संस्कृति का जीवंत प्रतीक है।

इस महायज्ञ में उमड़ी भीड़, जो लाखों की संख्या में थी, इस आयोजन की लोकप्रियता और श्रद्धा का प्रमाण है। आयोजन के दौरान श्रद्धालुओं की संख्या इतनी अधिक थी कि मोबाइल नेटवर्क ठप पड़ गए।

आगामी रस्म “बेड़ा”:
महायज्ञ के अंतिम चरण में शनिवार को “बेड़ा” रस्म संपन्न होगी। इस रस्म में बेड़ा सूरत राम नौवीं बार बरुत पर चढ़ेंगे।

यह रस्म न केवल साहस और आस्था का प्रतीक है, बल्कि महायज्ञ का सबसे बड़ा आकर्षण भी है। इसे देखने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु उमड़ते हैं।

भुंडा महायज्ञ न केवल देवताओं की पूजा का पर्व है, बल्कि यह स्थानीय संस्कृति और परंपराओं का उत्सव भी है। यह आयोजन हिमाचल प्रदेश की अद्वितीय धार्मिक आस्थाओं और सांस्कृतिक समृद्धि का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करता है।

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