शर्मा जी, एप्पल न्यूज़, शिमला
देश मे जब कोरोना महामारी फैली तो हिमाचल प्रदेश में सरकार ने कर्फ़्यू लागू कर दिया। सभी अपने घरों में बंद हो गए। सड़कें सुनसान कार्यालय बन्द हर तरह सन्नाटा। लेकिन इसी बीच सबसे महत्वपूर्ण कार्य था कोरोना संक्रमितों के उपचार के लिए साधन उपलब्ध करवाना। और स्वास्थ्य विभाग के मुखिया ने यह अहम जिम्मेदारी सौंपी विभाग के सक्षम और सबसे तजुर्बेकार अधिकारी उप निदेशक डॉ रमेश चंद के कंधों पर।
डॉ रमेश चंद लम्बे अरसे तक आईजीएमसी शिमला में बतौर एमएस अपनी सेवाएं देकर हिमाचल के आम और खास सभी लोगों का दिल जीत चुके थे। ये अलग बात है कि सत्ता बदली और बीते 2 वर्षों से डॉ रमेश चंद गुमनामी के अंधेरे में ही थे लेकिन जब विपदा आई तो वह पूरी निष्ठा, लग्न और तन्मयता से सौंपे गए कार्य मे जुट गए।
न वाहन न स्टाफ न सुविधाएं न कार्यालय, न स्टोर…. थी तो बस एक लग्न… जिसके बूते उन्होंने दिन रात एक कर अधीनस्थों को जोड़ा, प्रदेश से बाहर अपने सम्पर्क सूत्रों को सक्रिय कर विपरीत परिस्थियों के बावजूद अपने कौशल और तुरन्त निर्णय लेने की क्षमता का परिचय देते हुए मास्क, ग्लव्स, सेनेटाइजर, पीपीई किट, अजिथ्रोमाईसीन और हाइड्रोक्सी क्लोरो क्वीन, वेंटिलेटर और डैड बॉडी कवर जैसे हर वह सामान शिमला पहुंचा दिया जिसकी आने वाले समय में जरूरत पड़नी थी।
108 एम्बुलेंस के माध्यम से दिल्ली से सामान शिमला पहुंचाया और यहां से प्रदेश के सभी मेडिकल कालेज, जिला अस्पताल और कोविड सेंटर में पहुचाया। जब दिल्ली में सामान नहीं मिल रहा था तब वह हिमाचल में हर जगह उपलब्ध था। ये अलग बात है कि कई संस्थानों में अव्यवस्था के चलते ये किट जरूरत के समय उपयोग में लाई ही नहीं गई।
एक बड़ा चैलेंज था जो डॉ रमेश चंद ने हंसते हंसते स्वीकार किया और आज स्थिति ये है कि प्रदेश में किसी भी सामान की कमी नहीं और गोदाम भरे पड़े हैं।
डॉ रमेश चंद ने कहा कि स्थिति कैसी भी हो उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। गाड़ी नहीं थी तो एम्बुलेंस से सामान पहुंचाया, लेबर नहीं थी तो खुद स्टाफ के साथ कंधे पर उठाकर ट्रक खाली करवाये, चाय व खाने की व्यवस्था नहीं थी तो चालकों परिचालकों को अपने घर से खाना लाये। सुबह 6 बजे से लेकर रात तक काम करते रहे। अपने निजी फोन नम्बर को सार्वजनिक रखा। दिन रात सैकड़ों कॉल्स आये लेकिन कर्फ़्यू लगने के बाद से आज तक एक पल के लिए भी अपना फोन स्विच ऑफ नहीं किया।
डॉ रमेश चंद ने अपने आला अधिकारियों और सहयोगियों का आभार जताते हुए कहा कि इन सभी के विश्वास को बनाए रखने में वह सफल रहे। उस दौर में जब अधिकारी, कर्मचारी व आम जनता सभी कोरोना के साये में अपने घरों में कैद थे वह अपनी टीम के साथ मानवता की सेवा में मैदान में डटे रहे। वह खुद को सौभाग्यशाली मानते हैं क्योंकि ऐसे अवसर जीवन मे बिरले ही मिलते हैं।
हाथ धोएं- साबुन पानी से सेनेटाइजर केवल इमरजेंसी में- डॉ रमेश
डॉ रमेश चंद का कहना है कि बार बार सेनेटाइजर का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। जहां भी सम्भव हो साबुन और पानी से कम से कम 20 सेकेंड तक अच्छे से हाथ धोएं। घबराएं नहीं वायरस मुंह या नाक के रास्ते ही ज्यादातर शरीर मे प्रवेश करते हैं इसलिए सावधनी बरतें। सेनेटाइजर केवल उस स्थिति में इस्तेमाल करें जब पानी उपलब्ध न हो। क्योंकि सेनिटाइजर से कई बार एलर्जी की समस्या भी हो जाती है।
मास्क 3 प्लाय या फिर कपड़े का बेहतर
डॉ रमेश चंद का कहना है कि मास्क कोई भी पहनें लेकिन साफ और स्वच्छ हो। बेहतर है 3 प्लाय का मास्क ही पहने। लेकिन कपड़े का मास्क सबसे बेहतर है। घरों में ही खुद कपड़े का मास्क बना सकते हैं। अन्यथा गमछा, दाठु, मफलर और रुमाल भी बेहतर विकल्प है। N95 मास्क केवल कोरोना संक्रमित या फिर उसका इलाज करने वाले चिकित्सकों और पैरा मेडिकल स्टाफ के लिए ही जरूरी है अन्य को नही ।